बेरोजगार
बेरोजगार
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जहां दिन होती बिस्तर पर
रात होती मोबाइल में
दिन भर कटती है बस
किताबों की आड़ में
मुरझाया मुरझाया सा चेहरा है
दिल में दबी है हसरतें
दिन भर ताने सुनता हूँ
पर पैर है आसमान में
दिन भर ख़्वाब टूटते बुनते हैं
पर चलती हैं उम्मीदों की सांसें
क्योंकि मैं स्वयं एक ख़्वाब हूं
हां मैं बेरोजगार हूं
हां मैं ही बेरोजगार हूं