बेफिक्र...!
बेफिक्र...!
मन के घोड़े पर
सवार होकर,
बस,
उस बंजारों की बस्ती में,
है जाना,
जहाँ में मदमस्त रहूँ,
और हो जाऊँ
इस दुनिया से बेगाना।।
मन के घोड़े पर
सवार होकर,
बस,
उस बंजारों की बस्ती में,
है जाना,
जहाँ में मदमस्त रहूँ,
और हो जाऊँ
इस दुनिया से बेगाना।।