बेइंतहा...
बेइंतहा...
खुशनुमा कशमकश में
गुज़र जाए ज़िंदगी...
ये कभी मुमकिन नहीं...!
हर एक मुस्कुराहट के पीछे
यहां छुपे हैं
बेइंतहा गम ज़िंदगी की...!!!
ज़रा-सी आहट पे
खौफ खाता है दिल इंसान का
न जाने किस ओर से
शुरू हो जाए तूफ़ान-ए-दरिंदगी...!!!
यहां इस कदर हावी है
अनजानी सैलाब-सी
गमगीन ख़ामोशी...
कि शाख से टूटकर
गिरने की भी
आवाज़ आती है, सुनो
उन सूखी पत्तियों-सी
ख्वाबों की...
बेइंतहा...
