बेबुनियाद
बेबुनियाद
प्रेम एक जंग है
मैं प्रतिपल लड़ा हूं
जज़्बात-ए-मैदान
कलम को शस्त्र बनाकर ,
स्याही को ढ़ाल बनाकर
काग़ज़ को पैग़ाम बनाकर ,
फिर भी फ़तेह कहां मिली
दिल को शिकस्त ही मिली
क्योंकि सामने बेबुनियाद
खड़ी थी नफ़रत की चट्टान ।
प्रेम एक जंग है
मैं प्रतिपल लड़ा हूं
जज़्बात-ए-मैदान
कलम को शस्त्र बनाकर ,
स्याही को ढ़ाल बनाकर
काग़ज़ को पैग़ाम बनाकर ,
फिर भी फ़तेह कहां मिली
दिल को शिकस्त ही मिली
क्योंकि सामने बेबुनियाद
खड़ी थी नफ़रत की चट्टान ।