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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

बद्तमीज़

बद्तमीज़

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डरता नही दुखता नही

निरंकुश हो गया है

इंसान इस जगत का

इंसानी चोले में शैतान हो गया है

हवस हुई है हावी

संस्कार खो गया है

लज्जा को लाज आयी

व्यभिचार बढ़ गया है

नग्नता का व्यापार

उन्मुक्त हुआ अनर्गल

कलयुगी जगत का

रूप अब अधिकतम

वीभत्स हो गया है

वीभत्स हो गया है

किसको सुनाऊं

जाकर व्यथा इस

हृदय की हर शख्स

इस व्यथा का

शिकार हो गया है 

बोये थे आम

निकलेंगे नीम और करेले

कभी सोचा न था

धरती माँ का व्यवहार

अनोखा हो गया है

डरता नही दुखता नही

निरंकुश हो गया है

इंसान इस जगत का

इंसानी चोले में शैतान हो गया है।


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