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बदनसीबी कि हद हो गयी

बदनसीबी कि हद हो गयी

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बदनसिबी कि हद हो गयी भगवान, 

अब मैं हारने लगा हूँ रे

क्या था मैं, क्या बन गया हूँ 

खुद कि नजर में गिरने लगा हूँ रे। 


बाजार में मजबूरी से, 

बिक गये जो तन।

ज़रा उनको तो पूछो, 

क्या लगता है उनका मन। 

लूटा लूटा के अपनी सुगंध को, 

कई फूल मुरझाने लगे हैं रे। 

बदनसिबी की.. 


चले आये बिन बुलाए, 

हम आपकी जिंदगी में

कुछ ख़ातिर का मौका तो दो, 

मुझे आपकी बन्दगी में। 

जिंदगी के सफर में अकेले, 

मेरा दम घुटने लगा है रे। 

बदनसिबी की..


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