बदलते लोग
बदलते लोग
बदल रही, दुनिया, बदल रहे है, लोग
पर तू खुद पर अवश्य लगाना, रोक
स्वार्थ खातिर प्रभु के लगाते है, धोक
ऐसे को न बता कभी मन के बोल
जिस गिलास में पानी को पीते है
उसी गिलास में जहर देते है, घोल
ऐसो से रिश्ते का न रख तू शौक
सम्मुख अच्छे, पीछे देते खंजर घोप
बदल रही दुनिया, बदल रहे है, लोग
सब स्वार्थ खातिर करते है, कलोल
इससे अच्छा अकेला रह, तू ढोल
कोई व्यर्थ न बजायेगा तेरा ढोल
शेर जंगल मे अकेला रहता है, रोज
गीदड़ों की बस्ती में न वक्त, तू घोल
बदल रही दुनिया, बदल रहे है, लोग
तू मौसम की तरह नही जाना, डोल
पर तू साखी अपने धुन का रह, बोल
तेरी नैसर्गिकता का न कर सके, तोल
लोगों से नहीं, अपना तू खुद कर, मोल
तू पत्थर नही कोहिनूर है, अनमोल।
