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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

बदलते लोग

बदलते लोग

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बदल रही, दुनिया, बदल रहे है, लोग

पर तू खुद पर अवश्य लगाना, रोक

स्वार्थ खातिर प्रभु के लगाते है, धोक

ऐसे को न बता कभी मन के बोल


जिस गिलास में पानी को पीते है

उसी गिलास में जहर देते है, घोल

ऐसो से रिश्ते का न रख तू शौक 

सम्मुख अच्छे, पीछे देते खंजर घोप


बदल रही दुनिया, बदल रहे है, लोग

सब स्वार्थ खातिर करते है, कलोल

इससे अच्छा अकेला रह, तू ढोल

कोई व्यर्थ न बजायेगा तेरा ढोल

शेर जंगल मे अकेला रहता है, रोज


गीदड़ों की बस्ती में न वक्त, तू घोल

बदल रही दुनिया, बदल रहे है, लोग

तू मौसम की तरह नही जाना, डोल

पर तू साखी अपने धुन का रह, बोल


तेरी नैसर्गिकता का न कर सके, तोल

लोगों से नहीं, अपना तू खुद कर, मोल

तू पत्थर नही कोहिनूर है, अनमोल।


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