STORYMIRROR

Kawaljeet GILL

Abstract

2  

Kawaljeet GILL

Abstract

बदले में

बदले में

1 min
172

होंठो पे मुस्कान सजाकर

अपने हर दर्द को छुपाकर

हर दिन करती एक नई शुरुआत है

औरत के है रूप हज़ार। 


वो माँ भी है, बहन भी है, दोस्त भी है

बीवी, बहू, बेटी भी है

शिकन अपने माथे पर आने ना दे

आँसू अपने खुद ही पी जाएं।


नौकरानी का भी दर्ज दे तो

तब भी हँसकर वो आगे बढ़ जाये

हर काम हर फ़र्ज़ वो खुशी खुशी निभाये।


बस बदले में इज़्ज़त और हक अपना चाहे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract