"" बचपन ""
"" बचपन ""
बचपन फिर जीना चाहू, गुडीयाँ बनके खेलू।
ये सुहाने पल! लौट आओ, जी भरके मैं खेलूँ।
कोई नही जिम्मेदारी, खिलखिलाके हैं हँसनां ।
अनजानोसे दोस्ती करू, नन्हे दोस्त से मैं खेलूँ।
फुलोंके रंग है होते हजार , नहीं उनमें भेदभाव ।
सभी फुल मनभावन, दौडकर तितलीयोंसें मैं खेलूँ ।
तारें आसमाँ के गिन गिन , दो दो का पाठ सिखूँ ।
सबसे मै दोस्ती करके,सापसिडीका खेल मैं खेलूँ।
चंदामामासे कहानी सुनकर, खिलौना उनसे मांगू।
कहानी बताकर हँसाते खुब, सपनों में उनसे मैं खेलूँ।
टिम टिम करके सितारें, बातोंपर मेरे हँसते ।
नटखटीयाँसे यें सारे चमकते , छुपाँ छुपी मैं खेलू।
बडे दादाजीकों थका थकाकर घोडा उन्हें बनांवू ।
पीठपर धम्म सें बैठकर नचा-नचाकर मैं खेलूँ।
दिदीनें छुपाकर खिलौना, सता-सताकर रुलाया।
बदलेमें चिख-चिखकर,छिनछिनकर खेल मैं खेलू।
प्यारासा यें बचपन , मांगू भगवानसें बार बार ।
बिते पल आते याद,बनकर बच्चा! आज भी मैं खेलूँ।
© डॉ. ज्योती नागपूरकर