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Jyoti Nagpurkar

Abstract

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Jyoti Nagpurkar

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"" जीवनपथ""

"" जीवनपथ""

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पंछी की कलकलाट हुई, हौले से नींद से आँखें खुली।

आयी फिर सुहानी सुबह सजधज भरकर लाली।


बैठा खिडकी के कोनेंमें, कुछ कहने को हो आया ।

नजर भरी भरीसी मलमल सा पंख कोमल काया।


कहा मैने उसे, क्यूं आहे हो प्यारे! रुप के सागर।

एक दूसरे को ताक रहे हैं , दोनों होठों की चुप्पी कर।


कैसा अजीब था, वो पल दो पल का साथ हमारा।

बोल रही थी नजर शायद, कुछ दे सकूं सहारा।


मैं तो आजाद मन का, खुला आशियॉंना है मेरा।

सॉंसें भी जैसी दबी दबी, पिंजरा है ठिकाना तुम्हारा।


रहती हो हमेशा डरी डरी, हौसला है हमारी उडान।

कैसा कमजोर रहन तेरा,सहना नही होता है महान।


जीवन एक मंजिल है, मन की ताकत तुम्हारा साथ।

एक दूजे का बनकर रहना, बढाना होता है हाथ।



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