बचपन
बचपन
अब तक का सफ़र...
एक खेल था गुड्डे-गुडियों का।।
एक मज़ाक था,
जो हम एक-दूसरे से किया करते थे।।
न कोई समझ थी
न ही जीने का कोई ढंग था
बस एक सफर था
एक घर से दूसरे घर का
एक आजाद पंछी का
जो सुबह को निकलता
और शाम को अपने आशियाने में लौट आता।।
अब तक का सफ़र...
एक ऊँची उडान थी
पतँगों की डोरियों के साथ।
एक ज़ुनून था
एक दूसरे को हराने का
अब तक...
एक सफर था,
अंधेरे से डर जाने का
जबान के तुतलाने का
एक सफर था ,दूध के दाँतों के टूट जाने का
अब तक...
एक खेल था
हँसाने का,
रूलाने का
गलियो मे शोर मचाने का
एक-दूसरे को डराने का।।
अब तक का सफ़र
एक खेल था।
