सच की ओर एक नज़र
सच की ओर एक नज़र
मैं एषणा को अपनी दासी नहीं बनाना चाहती,
लेकिन अभीप्सा से कोई भी अछूता नहीं है
संसार की दौड़-भाग में जीवों की चिकीर्षा दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं:
इसी बीच जिज्ञासा से लोग उतने ही दूर होते जा रहे हैं
प्रत्येक व्यक्ति अपने हृदय में जिगीषा का भाव रखता है,
परंतु प्रत्येक व्यक्ति जिगीषू भी नहीं होता है।।
मैं एक युयुत्सु हूं
लेकिन मेरी युयुत्सा स्वयं से है कि प्रत्येक व्यक्ति
अपने हृदय में तितीर्षा का भाव रखता है।।
तंद्रा से तल्लीनता की स्थिति में कई बार अनचाहे प्रश्न मेरे हृदय में जाग उठते हैं
कि कहीं ये संसार एक नेपथ्य ही तो नहीं है
जिसमें लोग केवल प्रहसन ही करते हैं
और यवनिका हटते ही सब दूध सा साफ हो जाता है
ये प्रमेय है कि प्रदोष में सभी पक्षी अपने- अपने घोंसलों की तरफ लौटते प्रतीत होते हैं
जिघ्रक्षा को हर कोई तत्पर रहता है
लेकिन प्रत्युन्नमति रखने वाला ही धरा के अक्ष को स्पर्श करता है
वाग्मी तो हर कोई बनना चाहता है
लेकिन सही अर्थ में समीक्षक ही सच्चा साहित्यकार बन पाता है।।