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बचपन

बचपन

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कोई लौटा दे फिर वही दिन,

दोपहर की चिलचिलाती हुई धूप,

चिड़ियों का चहचहाना, पेड़ों की छाव,
संग मेरे साथी वही, जो भूल जाते थे,
घर आकर खाना रोटी का टूक,

कोई लौटा दे फिर वही दिन,

जब चोट लगने पर दिल दुखता नहीं था,
हार कर खेल में, हँसती थी आँखें मेरी,
जब कोई खेल किसी को, नहीं करता था दूर,
फिर हो जाती शुरू, हार जीत की लड़ाई हुज़ूर,

कोई लौटा दे फिर वही दिन,

जब छिनकर रोटी खाते थे तनहा,
मुसकुराती थी आँखें, चिड़चिड़ाहट नहीं थी,
दिल में सबके लिए प्यार, पर कोई आहट नहीं थी,

होता है वो बचपन, जिसके जाने की चाहत नहीं थी,

कोई लौटा दे फिर वही दिन,

जब खिलौने टूटने पर मातम नहीं था,
चुप कराते पापा, किसी पर शासन नहीं था,
नया खिलौना आने पर, मम्मी का भाषण सही था,

कितनी जल्दी थी तारों को गिनने की,

साफ़ नीला अंबर, कोई बादल नहीं था,

 


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