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Chandra prabha Kumar

Inspirational Children

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Chandra prabha Kumar

Inspirational Children

बचपन

बचपन

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मैं ठगी सी अनजान खड़ी रह गई,

ओ, बालपन की क्रीड़ा तू पीछे ही रही।

मैंने खेल खेला मनमाना जी भर,

पर मोहक, तू लौट गई पीछे ही।


      मेरे मन में कितनी इच्छाएँ,

     लिए हृदय में पुलक वेदनाएं,

     पर ओ चंचल , उलझा मुझे मग में,

     तू खेल खिलाती चली गई।


कैसे बढ़ूँ इस सघनता में,

हे बालपन की क्रीड़ास्थली।

तज दूँ कैसे इस वीथिका को,

मेरे भाग्य उषा की उजियारी।


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