बचपन
बचपन


कहाँ गायब हो चले है वो बचपन के दिन,
जहां अपनों के प्यार में खुशियां थी सस्ती।
इन अनोखी संसार मे खेलते कूदते वो दिन,
जहां बहती रहती थी मस्त सपनों की कश्ती।
कहाँ दब गए छोटी छोटी चीजों में बड़ी खुशियां,
न थी परेशानी और न थी सर पे जिम्मेदारियां।
घड़ी घड़ी मिलती थी पीठ थपथपाकर सब्बासियां,
दादी-नानी से रोज सुना करते थे अनेकों कहानियां।
बस खेलने खिलौने का ही फिक्र था मीठे बचपन मे,
पल हर पल बदला करते थे सपने उस अनूठे दौर में।
माँ के गोद जितनी ही थी धरती मेरे बचपन के दिनों में,
उन यादों को सहेज रखा है मैंने दिल की गहराइयों में।
उन दिनों की बात ही कुछ अलग थी बचपन की,
तरह तरह के खेल में सारा दिन मग्न रहा करते।
अब समय बदल चुका है डिजिटल जमाना आया है,
वो बचपन की यादें बचपन के पल महसूस न होते।