बचपन की याद
बचपन की याद
पेड़ व ताल
ताजी हो गयी फिर
बचपन की याद।
धुन सवार
कभी तितलियों के
तो कभी मेंढकों के
दौड़ता पीछे
दौड़ता ही रहता
जीवन बेहिसाब।
बूढ़ा पीपल
खड़ा गाँव के बीच
देता था कभी न्याय
बिन उसके
न्याय मिलते नहीं
पंच बने अय्याश।
वट का पेड़
रो रो कर सुनाता
गाँव के बुरे हाल
दुःखी हैं लोग
सूख गये हैं कुएँ
खो गया अब ताल।