ताँका : वसंत
ताँका : वसंत
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आया बसंत
खिल उठी सरसों
शोभा अनंत
सुरभित पवन
मधु दिग-दिगंत।
आई बासंती
कोयल के कण्ठ से
फूटते गीत
गुनगुनी सी धूप
जगाती मन-प्रीत ।
टेसू दहका
उठी अमुवा गंध
टप.. महुआ
घोलने सबरंग
आया जग बसंत।
प्रेम का दूत
जगाने को आया है
मन की हूक
ये बसंत रंगीला
हठीला महबूब।