STORYMIRROR

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

Others

3  

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

Others

ताँका : वसंत

ताँका : वसंत

1 min
289


आया बसंत 

खिल उठी सरसों 

शोभा अनंत 

सुरभित पवन

मधु दिग-दिगंत।


आई बासंती 

कोयल के कण्ठ से 

फूटते गीत 

गुनगुनी सी धूप 

जगाती मन-प्रीत ।


टेसू दहका 

उठी अमुवा गंध 

टप.. महुआ 

घोलने सबरंग 

आया जग बसंत।


प्रेम का दूत 

जगाने को आया है

मन की हूक

ये बसंत रंगीला 

हठीला महबूब।



Rate this content
Log in