बचपन की वो हँसी
बचपन की वो हँसी
बचपन की वह हँसी
फिर से वापस आ जाए
जिंदगी का वह दौर
फिर से वापस आ जाए।
दोस्तों के साथ समय बिताना
फिर से वापस आ जाए
बातों - बातों में रुठ जाना
फिर से वापस आ जाए।
घर से छिपकर पुरानी
मैदान पर क्रिकेट खेलना
फिर से वापस आ जाए।
खुद आइंस्टाइन बनकर
खिलौने पर शोध करना
फिर से वापस आ जाए।
बरसात के पानी में
कागज के नावों को बहाना
फिर से वापस आ जाए।
और गर्मियों की छुट्टियों में गांव में
आम के पेड़ पर डोल- पत्ता खेलना
फिर से वापस आ जाए।
क्या जिंदगी थी उस दौर की
जब हम आजाद थे
हर एक चिंताओं से मुक्त थे।
बस उमंग होती थी
अपनी धुन होती थी
अपनी संगीत होते थी
हम लोगों की अपनी ही
छोटी दुनिया होती थी।
इस तरह की जिंदगी में
बस सुख होता था !
लेकिन अब हमारे पास
समय की पाबंदी है।
एक दूसरे से मिलने की
ना कोई गारंटी है
हां है तो एक अनमोल
चीज हमारे पास।
शायद उसे ही कहते हैं
यादों की पुरानी पोटली !
और वह जा छिपी है
इतिहास के पन्नों में।
और शायद आज के वर्तमान में
थोड़ा मुश्किल है
उन पन्नों को पलटना
लेकिन शायद वह हँसी
हमारी जिंदगी में
फिर से वापस आ जाए !