STORYMIRROR

Reetu Singh Rawat

Abstract

4.6  

Reetu Singh Rawat

Abstract

बचपन की मस्ती

बचपन की मस्ती

2 mins
24K


मुझे बचपन के वो दिन याद आते हैं

जब मैं काली-नीली-पीली-लाल-सफेद

रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागा कर करती थी।


पेड़ों पर बने घोसले से चिड़िया और

तोते निकाल घर में पल करती थी।

बारिश में कागज की नाव चलाती थी।


चांद को गाना सुनाती थीं चंदा मामा दूर के

पुए पकाए बुर के आप खाए थाली में मुझे

खिलाए प्याली

में प्याली गई टूट चन्दा मामा गए रूठ।


आज यादों का सिलसिला कुछ धुंधला हो गया है। 

पर बचपन की शैतानियां अभी भी जिंदा है।

बड़ी हो गई माँ बन गई फिर भी घर में

सबसे छोटी और नटखट हूँ रोते को हंसती हूँ।


जीवन में खुशियों का महत्व समझती हूँ

जीवन जीतने के लिए है हारने के लिए नहीं।

तितलियों-फूलों को देख कर आज भी मुस्कराती हूँ

बड़ी हो गई फिर भी बच्चों की तरह मुस्कराती हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract