बचपन के दिन
बचपन के दिन
बहुत उड़ाईं थीं पतंगें उस दिन
जिस दिन चचा ने कहा कि
पतंग उड़ाना अच्छी बात नहीं।
बहुत कूदे थे कीचड़ में उस दिन
जिस दिन ताऊ ने कहा कि
कीचड़ में कूदना अच्छी बात नहीं।
बहुत चोरी थीं ककड़ियां उस दिन
जिस दिन पिता ने कहा कि
चोरी करना अच्छी बात नहीं।
बहुत उड़ाये थे जहाज उस दिन
जिस दिन टीचर ने कहा कि
पन्ने फाड़ना अच्छी बात नहीं।
बहुत साधा चिड़ियों पर निशाना उस दिन
जिस दिन भैया ने कहा कि
गुलेल चलाना अच्छी बात नहीं।
बहुत पीटे थे दोस्तों को उस दिन
जिस दिन सहपाठी ने कहा कि
लड़ना-झगड़ना अच्छी बात नहीं।
बहुत तोड़े थे फूल उस दिन
जिस दिन पड़ोसी ने कहा कि
फूल तोड़ना अच्छी बात नहीं।
बहुत फैलाई गंदगी उस दिन
जिस दिन दादी ने कहा कि
किस्से सुनना अच्छी बात नहीं।
बहुत खाई थी चीनी उस दिन
जिस दिन माँ ने कहा कि
मीठा खाना अच्छी बात नहीं।
मुझे याद है अच्छी तरह
उस दिन मैंने किताब खोली ही नहीं
जिस दिन उन्होंने कहा कि
किताब पढ़ना अच्छी बात है।।
