बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे
फूल है छोटे-से हम,
खिलना है अब हमें,
हीरे है हम तो,
अपनी चमक से,
इस दुनिया में
रोशनी फैलानी है हमें।
तो क्या हुआ जो हम भिन्न है,
यही तो हमारी ख़ासियत है,
जब पढ़ाई छोड़कर हम खेलते हैं,
तो मिलती हमें पढ़ाई
करने की हिदायत है।
खूबियाँ है हम सब में अनेक
जो हैं बड़ी निराली,
हम से ही तो फैलती है,
इस दुनिया में ख़ुशहाली।
हम तो वो मिट्टी हैं,
जिसे है मात्र आकार देने की देर,
हम है प्यारे 'बच्चे',
है इस दुनिया का भविष्य,
है हम मस्ती का, एक बड़ा ढेर।
नहीं है हमारे जीवन में चिंता,
है हम बड़े नादान,
हम है इतने प्यारे,
कि सबकी है हम जान।
है ये बचपन बड़ा निराला,
जिसके मज़े हमें उठाने है,
क्योंकि बड़े होने के बाद ये पल,
कहाँ वापिस आने हैं।