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Dinesh Sen

Abstract

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Dinesh Sen

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बच्चे मन के सच्चे

बच्चे मन के सच्चे

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माँ के गर्भ से ही शिशु की

कक्षाएं शुरू होती हैं।

माँ ईश्वर का रूप,

मात् ही प्रथम गुरू होती हैं।।

शिशु कच्ची माटी के घडे,

पक के अच्छे होते हैं।

बच्चे कैसे भी हों बच्चे 

मन के सच्चे होते हैं।।


कखगघ सीखा माँ से,

चछजझ सीखा शुरू से।

पफबभ सीख सखा से,

पूरा ज्ञान लिया गुरु से।।

आकार जो चाहो दो इनको

भावों के कच्चे होते हैं।

बच्चे कैसे भी हों बच्चे 

मन के सच्चे होते हैं।।


आई अवस्था हुए किशोर,

तन मन में मस्ती छाती है।

दो सब ज्ञान गूढ मन को,

ये उमर गजब कर जाती है।।

नेक इरादे भर दो इनमें,

संकल्पों में पक्के होते हैं।

बच्चे कैसे भी हों बच्चे 

मन के सच्चे होते हैं।।



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