बैरी चांद
बैरी चांद


बैरी चांद जब तू आएगा, क्या मेरे सजना को संग तेरे लाएगा,
वो सुंदर मुखड़ा तेरे दरपण में, मुझको कैसे कब दिखलायेगा।
सावन सोलह मेरे हो गए हैं पूरे, पर सपने सारे हैं अभी अधूरे,
बिन सजना के जो मैं घूमूं तो, लगता ऐसे है जैसे हर कोई घूरे।
एक अमावस से एक पूनम तक, होते हैं दिन पूरे गिनकर तीस,
रातों की कोई गिनती नहीं, कभी हों चालिस कभी लगती तीस।
दिल की हालत भी है मध्धम, कभी धड़के कभी चले थम थम,
बिन सजना ना निकली जाए, बड़ा सताए बाली उमर में ये ग़म।
तेरे सहारे ही काटी कितनी रातें, करती थी तुझसे ही सब बातें,
गाने प्रीत के थे कितने गाते, क्या तुझको भूलीं सब मुलाकातें।
अरे चल इतना तो मुझे बता दे, इक थोड़ी सी ही झलक दिखा दे,
अपनी इन प्यारी सी रातों में, सपनों में ही मोहे पिया से मिला दे।
बैरी चांद क्यों रूठा है, क्या तेरा अपना भी कोई तुझसे छूटा है,
नाता तुझसे भी अब टूटा है, सच कहती थीं सखियां तू झूठा है।
बैरी चांद तू कब जाएगा, कब तक रातों में मुझे यूं ही सताएगा,
मेरे सजना का मुझे पता बताना, कल फिर जब मिलने आएगा।