बावरा मन
बावरा मन
कान्हा मुरली को बजा रहे,
सुन मुरली की मधुर तान,
राधा का मन बेचैन हुआ,
लाज़ शरम सब छोड़ के राधा,
कृष्णा से मिलने निकल पड़ी,
सखियों ने पूछा कहां चली ?
चुनरी सिर से ढलकी क्यों है ?
सखियों की बातें सुन राधा,
बोली सखियों से होकर बेचैन,
छोड़ो रस्ता जाने दो मुझको,
कान्हा ने बंसी बजाई है,
सुनकर मुरलीधर की बंसी को
बेचैन हुआ तन मन मेरा,
कान्हा की मुरली मुझे बुलाए,
राधा का मन यह जाने है,
मैं मनमोहन के प्रेम पगी,
कान्हा से मिलने के खातिर,
मेरा मन बेचैन हुआ,
कृष्णा का प्रेम मेरे मन में,
मोहन के रंग रंगी राधा,
कृष्णा की बंसी जब-जब बाजे,
राधा बेचैन हुई मन में,
राधा के मन में सिर्फ कृष्णा हैं,
कृष्णा राधा से अलग कहां ?
दोनों का मन बेचैन रहा,
पर प्रेम सदा पावन ही रहा।।