Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Fantasy Inspirational

4  

Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Fantasy Inspirational

बावरा हो गया मेरा मन

बावरा हो गया मेरा मन

2 mins
304


बावरा हो गया मन मेरा,

बावरी सी है इसकी बातें।

समझाऊं कितना भी, मनाऊं कितना भी,

पर न समझे - न माने, अब हो गया बावरा।

करे मनमानी, साथ में नादानी,

हर काम में आनाकानी,

इसे सदा रहे परेशानी।


अब तो ऐसे काम ना चलेगा,

इस बावरे मन के साथ अब,

मुझे भी बावरा बनना पड़ेगा ।

पागल- दीवाना समझे खुद को होशियार,

मैं एक बात बोलूं तो, यह सुनाएं बातें चार।

अपनी बातों की पुष्टि,करता

रहे बार-बार, इसके कान चढ़ाऊं

चाहे जितना भी धमकाऊँ।


पर समझे न बात, सदा करें फरियाद,

छोटी-छोटी बातों पर यह रोता रहता हैं।

जैसे इसको ही हो,

पूरी दुनिया का अवसाद।

किया मुझे बदनाम, सदा झेलूं अपमान,

मेरे स्वाभिमान की कर दी,

इसमें ऐसी-तैसी

मुझे गड्ढे में भी गिराया

हर -बार, बार-बार शर्माया,

कभी काम न आया,

सदा स्वार्थीपन दिखाया।


जालिम रोज तड़पाया,

मुझे फंटूश भी बनाया।

बावरा हो गया अब मन मेरा,

बावरी सी सदा है इसकी बातें।

लूट लिया, मुझे गमगीन कर दिया,

चैन-शांति नष्टकर, वेचाराधीन कर दिया।

नए सपने दिखाए, दिन-रात जगाए।


न रहने दे चैन से, सदा ही भगाए,

उल्टी-सीधी बातों से भी, कभी ना शर्माए।

मनमानी करे अपनी, कहीं भीआए- जाए।

एक बात पर ना रहे, सदा बदले विचार,

छोटी-सी नहीं इसका बहुत बड़ी है संसार।


पल में यहां, पल में वहां,

पल में जाए ऑस्ट्रेलिया।

सोचें इस वक्त दीदी क्या कर रही होंगी।

बावरे मनका, मैं मारा हूं बेचारा,

टिकने ना दे एक जगह फिराता मारा-मारा

पर मैंने भी अब इस बेलगाम घोड़े की,

लगाम डालने की कोशिश शुरू कर दी है,

इस बावरे मन से, पूरी दुनिया है परेशान,

करतब इसके ऐसे, कि जिसे सभी हैरान।


एक सन्यासी की, छोटी कहानी सुनाता हूं,

गुरुदेव हमारे हमें, जिसे सुनाया करते थे।

बावरा मन खूब बार-बार तड़पाया,

जलेबी खाने को आस लगाया।

पास पैसे नहीं, पूरा दिन मजदूरी कराया,

मिली मजदूरी फिर शाम को।


खरीदा जलेबी उस सन्यासी ने,

बैठकर तालाब के किनारे।

बावरे मन को दिखा -दिखा कर

एक- एककर सारी जलेबियां,

फेंक दी तलाब में


जैसे को तैसा, तभी मानेगा यह बावरा

मैं अपनी सुनाता हूं

मुझे भी तड़पाया, जब बहुत ही रुलाया।

प्रेरणा से गुरुदेव की,

मैंने फिर अस्वाद व्रत अपनाया,

न करने दूं अब इससे मनमानी।

इसे सदा ही अब फीका खिलाऊं,

कभी ना नमक-मिठास की स्वाद चखाऊं,

धीरे-धीरे यह सिकुड़ता जा रहा है,

अब अपनी औकात में।

मालिक नहीं इसे हम दास बनाएं,

आएं हम सभी मिलकर,

इस बावरे मन की सदा कान चढ़ाएं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy