Zahiruddin Sahil
Drama
क्रिकेट की गेंद
जब भी उछल के बाउण्ड्री
के बाहर आती है।
टीम हो भारत की
तो छाती चौड़ी हो जाती है !
मातृभूमि की बात ही
कुछ और है यारो !
राष्ट्र के नाम पर तो
मेरी बांछें खिल जाती हैं।
सुबह
रंग ए वतन
भेज भइया को ब...
आशियाना
अमल
इशारों क...
बुलावा
पैगाम
आँगन
होने से
आंखों में नीर भी कह रहा ये शहर इतना झूठा क्यों है ? आंखों में नीर भी कह रहा ये शहर इतना झूठा क्यों है ?
कि चले जाओ वही जहाँ ये रूह-ए-एहसास, अब रहती नहीं। कि चले जाओ वही जहाँ ये रूह-ए-एहसास, अब रहती नहीं।
पुरुष अक्सर मुझसे पूछते हैं, 'तुम्हारी महिला पात्र इतनी पागल क्यों हैं?' पुरुष अक्सर मुझसे पूछते हैं, 'तुम्हारी महिला पात्र इतनी पागल क्यों हैं?'
किसी को प्रेम लिप्त करा दे, और परलोक भिजवा देता पैसा। किसी को प्रेम लिप्त करा दे, और परलोक भिजवा देता पैसा।
महाकाली की क्षुधा अब भी पापियों के रक्त हेतु अशांत है। महाकाली की क्षुधा अब भी पापियों के रक्त हेतु अशांत है।
इस बार सबको अनदेखा कर उनका हाथ थामना जिनको बस अपनों की तलाश है इस बार सबको अनदेखा कर उनका हाथ थामना जिनको बस अपनों की तलाश है
या खुदगर्ज बनके किया खुद से ही प्यार क्या मैं वहां गलत थी ? या खुदगर्ज बनके किया खुद से ही प्यार क्या मैं वहां गलत थी ?
सुबह की खिली हुई धूप का करो,स्वागत इस धूप में मिली हुई है,खुदा की मोहब्बत। सुबह की खिली हुई धूप का करो,स्वागत इस धूप में मिली हुई है,खुदा की मोहब्बत।
आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।। आज लहू से मन की गाँठें, धीरे-से खोल रहा हूँ।।
और यही सोच रही है कि कितना कुछ पकाया मैंने इस आंच में। और यही सोच रही है कि कितना कुछ पकाया मैंने इस आंच में।
कभी अपने घर में और कभी बेटे बहू के घर में। कभी अपने घर में और कभी बेटे बहू के घर में।
मैं पिरोती जाऊं मोती आस के ना जाने क्यूं धागा फिसल जाता है, मैं पिरोती जाऊं मोती आस के ना जाने क्यूं धागा फिसल जाता है,
मतदान का फिर क्या होगा? आपका एक वोट वहां कम न होगा ? मतदान का फिर क्या होगा? आपका एक वोट वहां कम न होगा ?
इस द्रौपदी की गिरधारी तक काहे ना पहुंचे पुकार है, इस द्रौपदी की गिरधारी तक काहे ना पहुंचे पुकार है,
बच्चों को अच्छा इन्सान बनाऐंगे। हर परिस्थिति का सामना करना सिखायेंगे। बच्चों को अच्छा इन्सान बनाऐंगे। हर परिस्थिति का सामना करना सिखायेंगे।
मुझ से क्या पूछते हो, पता इश्क़ की उन बस्तियों का, मैं ख़ुद भटका हुआ हूँ, उसकी वीराना गलियों में..... मुझ से क्या पूछते हो, पता इश्क़ की उन बस्तियों का, मैं ख़ुद भटका हुआ हूँ, उसकी...
कभी समय मिले तो, घड़ी दो घड़ी, बेटा, मिलने आते रहना। कभी समय मिले तो, घड़ी दो घड़ी, बेटा, मिलने आते रहना।
आपके दोस्त आपसे मिलने के पहले मिनट में आपको बेहतर तरीके से जान पाएंगे, आपके दोस्त आपसे मिलने के पहले मिनट में आपको बेहतर तरीके से जान पाएंगे,
दर्द दबाकर रखा है दफन सीने में और उन्हें कराह भी करना तक नहीं. दर्द दबाकर रखा है दफन सीने में और उन्हें कराह भी करना तक नहीं.
बड़ी भाती थी मुझे माँ और बच्चों की गतिविधियां जैसे मेरी जुड़ चुकी थी उनसे रिश्तेदारियां बड़ी भाती थी मुझे माँ और बच्चों की गतिविधियां जैसे मेरी जुड़ चुकी थी उनसे रिश्त...