बारिश की बूंदे
बारिश की बूंदे
ये बारिश की बूंदे मुझे बहुत लुभाती ,
कितनी चंचल ,चपला, शरारती है ।
धरा पर यहाँ वहाँ फुदकती रहती ,
कितनी निश्छल, निर्मल, है ।
झरोखे से मैं अक्सर इन्हें देखती रहती हूँ ,
बरसात के मौसम में, अठखेली करते हुये ।
कितनी अच्छा जीवन है इनका,
इतनी निर्भीक स्वच्छंदता से बहती है।
न कोई रोक टोक, न ही किसी का सुनना,
अपनी ही धुन में चलना, नये ख्वाब बुनना।
यह हिमाकत मेह की बूंदों में ही होती है,
बेबस नारी ऐसा बिल्कुल नही कर पाती ।
वो तो बस समाज की बेड़ियो में जकड़ी हुई,
अपनी दुर्दशा पर रोती, सिसकती हुई ,
मर्यादा में बँधी हुई, रिस्तो से जुड़कर ,
माँ, बहन, बेटी, पत्नी, का फर्ज निभाती है
तभी तो ये बारिश की बूंदे मुझे बहुत लुभाती है,