नारी तेरे रूप अनेक
नारी तेरे रूप अनेक
नारी तू नारायणी है
हर रूप में जीवनदायिनी है
बेटी बनकर घर आंगन महकाया।
घर में ख़ुशियाँ को फैलाया।
माँ की हमदर्द, पिता की हमराज बनकर।।
घर की रौनक को बढ़ाया।
ये तो बेटी है जो सबका जीवन महकाती है।
बहन बनकर भाई का हरदम साथ निभाती।
रक्षा का वचन तो भाई ने लिया।
पर बहन ने भी कभी पीछे हाथ नहीं किया।
जितना भाई देता है उससे दुगना लौटाती है।
ये तो बहन है जो भाई पर जान भी लुटाती है।
आती जब बहू बनकर मकान को घर बनाती है।
अपना घर छोड़कर पराये घर को भी अपनाती है।
ससुराल के हर रिश्ते को दिल से निभाती है।
सब सहकर भी, दोनो घरों की लाज निभाती है।
ये तो बहू है जो मर कर भी ससुराल की इज़्ज़त
बचाती है ।
पत्नी रूप में पति का हर दम साथ निभाती,
दुख ,सुख में कदम से कदम मिलाकर चलती,
पति की ख़ुशी की ख़ातिर, खुद की खुशी
भूल जाती,
उसके जीवन के लिये निर्जल व्रत करती
ये तो पत्नी है जो पति के लिये यमराज से भी
लड़ जाती है ।
माँ बनकर नवजीवन निर्माण करती ।
और अपना सर्वस्व समर्पण करती ।
बच्चों के लिये मन्नत उपवास करती।
खुद से पहले अपने बच्चों का सोचना।
वो एक माँ ही कर पाती है ।
ये तो माँ है, जो बच्चों के लिये कुछ भी
कर जाती है ।