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gyayak jain

Drama

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gyayak jain

Drama

बालपने में ज्ञान जो लहो

बालपने में ज्ञान जो लहो

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बालक सोचे दुनिया मेरी,

मात-पिता में बसी है पूरी,

बड़ा जो होता थोड़ा भी तो,

बदल उसकी दुनिया जाती।


छोटे-छोटे तारे सारे,

स्वर्ग गए इंसान हैं प्यारे,

पता चला अंतरिक्ष ज्ञान का,

भूल गया संबंध पुराने।


लड़कपन सा बचपन सबका,

समझ थी छोटी सी नादान,

छल-कपट से दूर थी दुनिया,

फिर कैसे बदला गया इंसान।


बड़े हो गये बच्चे सारे,

शायद बच्चे ही अच्छे थे,

क्या करें इस विकास का,

पहले हम ज्यादा सच्चे थे।


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