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Rajkumar Jain rajan

Abstract

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Rajkumar Jain rajan

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बाल मनोविज्ञान

बाल मनोविज्ञान

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बाल मनोविज्ञान

कहते हैं किसे

आओ विचारें

पैदा होने के बाद बच्चा

बड़ा होता जाता ज्यों - ज्यों

बढ़ता जाता उसकी

जिज्ञासाओं का परिवेश

चाहता है वह अपनी

जिज्ञासाओं का समाधान


मन होता है उसका संवेदनशील

हर घटना से बालमन 

सबसे पहले होता प्रभावित

उसके मन पर जो भी 

होता अंकित

वह अमिट बन जाता


बच्चों का क्षितिज 

चाहे जितना बड़ा हो

पर उसकी प्रारंभिक जिज्ञासा

रहती कायम मूल रूप में

वह जो देखते हैं, समझते हैं

वही वे सीखते हैं

अपनी समस्याओं का 

चाहते हैं तार्किक समाधान


होता कोरा कागज

बच्चे का निश्छल मन

बाल मनोविज्ञान 

के तहत 

होगा बच्चों का विकास

तो बनेगा देश व परिवार का 

सुंदर भविष्य


हम सब मानते हैं

बच्चों को जो संस्कार बचपन मे

पारिवारिक, सामाजिक

 शैक्षणिक वातावरण में

दिया जाता है 

आगे चलकर यही संस्कार

व्यक्तित्व के रूप में

होता है विकसित

जिससे देश बनता है

सुदृढ़, समृद्ध और

यशश्वी।


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