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Alka Nigam

Abstract

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Alka Nigam

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बाल मन

बाल मन

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रुई के फाहों जैसा होता है ये बाल मन

आईने के जैसा साफ़ होता है ये बाल मन


न ओहदे से न पैसे से आकर्षित होता बाल मन

प्रेम की भाषा पढ़ने में माहिर होता है बाल मन


ये हम पर निर्भर करता है कैसे गढ़ते है उसको हम

संस्कारों की मिट्टी से उन्हें दे सकते आकार हैं हम


राग द्वेष के कीचड़ में न दें उनको धसने हम

दया और सम्मान हो जिसमें ऐसी दृष्टि उनको दें हम


हमे देख हम से ही सीख विकसित होता इनका मन

तो इन्हें सँवारने से पहले क्यों न खुदको सँवारे हम।


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