अवसर
अवसर
पतझड़ का मौसम हूं
आता हूं मैं अपने मौसम में
मैं मौजूदा प्रकृति में
सदैव ही शामिल हूं।
मैं किसी अन्य के लिए
बिछाता हूं पत्ते राह में
यह हवा मुझे बुहार कर
ले जाती है दूसरी जगह।
जगहों जगहों पर बिखरे पत्ते
पैरों के तले रौंदे जाते हैं
रौंदने पर भी फिर गिर गिर कर
पत्ते गिरने से बाज नहीं आते हैं।
तब तक नहीं आते हैं पत्ते हरे
जब तक सारे पत्ते झर नहीं जाते हैं
सर सर हवा के संग उड़ने के बाद
अक्सर आखिर मिट्टी में मिल जाते हैं
यह जीवन भी पत्तों सा गिरता है
कब गिर जाए पता नहीं चल पाता है
जीवन जीने के अनेक अवसर गुजरने के बाद ही कहीं
कोई एक अवसर मानव जीवन जीने का मिल पाता हैं।