अवलम्ब प्रेम का
अवलम्ब प्रेम का
सुना है प्रेम बँधना नहीं चाहता
वह बहना चाहता है निर्बाध, अविराम
स्त्रोत कहाँ है प्रेम का ?
सुना है स्त्री - हृदय
अवलम्ब कहाँ है प्रेम का ?
सुना है पुरुष - साहचर्य !
साहचर्य में उत्पन्न हुआ दम्भ
जन्म हुआ अवरोधों का, प्रेम के स्त्रोत में
अवलम्ब होता गया दम्भ में निर्भय, स्वतंत्र
"और कभी दूध का ऋण चुकाने के लिए
तो कभी दूध का कर्तव्य निभाने के लिए
परतंत्र होता गया प्रेम का स्रोत
कभी अवलम्ब की अनिवार्यता की अदृश्य दीवारों में
तो कभी कैद होता गया
अपने कर्तव्यों के पारदर्शी जारों में।
