औरत
औरत


ग़मगीन जिंदगी का
सफर तूने पाया,
बचपन से जवानी
जवानी से बुढ़ापा
हर उम्र का सफर
तन्हा ही पाया।
कौन अपना था तेरा
जो इस जहाँ में लाया,
जानकर तेरी जाति
वो खामोश कहलाया।
पालकर तुझको
जो ऐहसान दिखाया,
अपने ही घर में
गैरों-सा प्यार निभाया।
तू जब बड़ी हुई तो
यह जहाँ भी न बदल पाया,
कलुषित नजरों से ही
वो तुझे देख पाया।
हर नजर ने तुझी को
दोषी पाया,
खत्म हुई पढ़ाई
और शादी का संदेशा सुनाया।
छोड़कर अपना आशियाना
एक नया आशियाना पाया,
शादी के बाद भी
सुख तूने दूर ही पाया।
काट-काट कर पेट अपना
तूने बच्चों को पढ़ाया,
अपने दुःखों को भूलकर
सुख बच्चों पर लुटाया।
खामोशी में डूबा सफर
जो तूने पाया,
तेरे रंज भरे आंसुओं को
कोई न देख पाया।
बुढ़ापे ने भी
न तुझ पर रहम खाया,
बड़े होकर औलाद ने भी
गैर बनाया।
ग़मगीन जिंदगी का
सफर तूने पाया,
बचपन से जवानी
जवानी से बुढ़ापा
हर उम्र का सफर
तन्हा ही पाया।