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Sunita Bahl

Tragedy

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Sunita Bahl

Tragedy

औरत

औरत

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मैं औरत हूँ ,औरत ही रहने दो, 

देवी ना बनाओ।

मेरी इज्जत की ठेकेदारी की,

अलख ना जगाओ।

भोग की वस्तु ना समझो मुझे,

बस अपनी सोच को अब समझाओ। 


मुझे नाज है रिश्तों को संभालने का,

मेरी भावनाओं को तमगे ना पहनाओ

जननी हूँ,वंश बढ़ाने का है अभिमान, 

मेरी कोख को लिंगभेद की बेड़ियां ना पहनाओ। 


 पंख खुलने दो मेरे, उड़ना है मुझे,

मेरे सपनों पर अंकुश ना लगाओ।

 ताकत है मुझमें जिम्मेदारियांँ निभाने की,

तुम बस अपने डर को भगाओ।

 

मैं बराबर नहीं, बढ़कर हूँ पुरुषों से ,

बस अब इस भेदभाव को मिटाओ।

यह सब बातें छोटेपन का कराती हैं अहसास,

मैं चल रही, बस मेरे साथ चले- चले जाओ।

अब बदलना होगा समाज को हो हाल में, 

अपनी इस सोच को नया जामा पहनाओ। 





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