"मशीन जैसा मानव "
"मशीन जैसा मानव "
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चलता है अंग-अंग इसका,
दिल धड़कता है पता नहीं ।
समाज के बंधनों में जकड़ा,
अपनेपन का पता नहीं।
डिजाइनर कपड़ों से लिपटा शरीर,
मन है क्या चंगा? पता नहीं।
डिग्री, नौकरी अच्छा पैकेज ,
बच्चों के रंग ढंग का पता नहीं ।
क्लब, पार्टी ,डिस्को मस्ती,
मां- बाप की जरूरतों का पता नहीं ।
इंसानों की भीड़ से पूछा ,
कहां जा रहे हो?वह बोले पता नहीं।
ई .एम .आई का हिसाब है सारा ,
बिखरे रिश्तों का पता नहीं ।
पैसों की चमक, झूठा दिखावा,
मन की शांति का पता नहीं।
आज जवानी जिंदादिली है,
बुढ़ापे का पता नहीं
अपने को समझे सबसे बुद्धिमान इंसान,
कितना मूर्ख है उसे पता नहीं ।