"औरत"
"औरत"
औरत का जितना सम्मान करूँ, उतना कम है,
चरणों में बसा जिसके, मेरा सब कुछ है,
जिसमें अपार शक्ति है, फिर भी कभी, जताती नहीं,
माहवारी जैसी कई तकलीफ़ें सहती है,
मगर चेहरे पर जिनको वो, कभी लाती नहीं,
सहनशक्ति से उन्हें, वो खुद में छुपाती है,
दुनिया को वो खुद की, दूसरों में बसाती है,
कभी माँ, कभी बहन, ऐसे कई रूप है,
दुनिया में मेरे अस्तित्व का, वो मूल स्वरूप है,
बताने को और भी है,
मगर एहसास, बस इतने में है,
औरत का जितना सम्मान करूँ, उतना कम हैं,
चरणों में बसा जिसके, मेरा सब कुछ है |
