और नज़र के सामने
और नज़र के सामने
एक कहानी थी, एक मंज़र था
दोनों बरसात में भीग रहे थे।
इक हम थे के सावन की बूंदों से बचते हुए
इक सावन था कि आँखों को खीँच रहा था।
धुंधली-धुंधली यादों के
पर्दे में मेरे साथ साथ
कोई था जो गीली गीली
आँखें लिए भी रहा था।
यूं बह रहे थे चुपचाप मेरे आँसू
जैसे बरसात में भीगे हुए
ख़त के अल्फ़ाज़ बह जाते हैं
जवानी ! खड़ी रह गई छतरी के नीचे !
और नज़र के सामने
काग़ज़ की कश्ती में
मेरा-तेरा बचपन बह गया !
