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Pallavi Pal

Tragedy Inspirational Others

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Pallavi Pal

Tragedy Inspirational Others

और ढूंढ लेना है खुद को

और ढूंढ लेना है खुद को

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वक़्त ने किया क्या हसीन सितम,
हम रहे न हम...
देख के आईना डर गई मैं,
 आज कौन था खड़ा सामने,
शायद देखा हो गौर से...
ख़ुद को बरसों के बाद।

 कभी जो चेहरे पे नूर सजाई थी,
 हुस्न की वो मल्लिका —
जो सब पे सितम ढाया करती थी,
आज देख के अपना हाल...
 ख़ुद से ही घबराई थी।

 ना जाने कब, कैसे सब कुछ बदल गया, जो मकान था कभी एक खूबसूरत इमारत,
धीरे-धीरे खंडहर में ढल गया।

 आँखों में आँसू थे...
अपने ही हाल को देख कर,
ख़ुद को संभालने की कोशिश में बस याद आ गया —
वो पल जब पहली बार डोली उठी थी...

 बनी दुल्हन, सजी एक नए सपने के लिए,
भूल कर अपना अस्तित्व,
सजाने लगी किसी और का जहां।

 बीवी से माँ बनी,
फिर एक-एक ज़िम्मेदारी निभाती चली गई...
 पर कभी अपने लिए नहीं जी पाई।

 जिससे जोड़ी थी ज़िंदगी,
सोचा था, वही देगा मुझे हर ख़ुशी —
पर यह मेरी गलतफहमी थी,
वो भी वक़्त के साथ बदल गया।

 अब मैं...
 सिर्फ़ एक "फ़र्ज़" बन कर रह गई उसके लिए।
शायद अब बहुत देर हो चुकी है...
 चेहरे की रंगत खो चुकी है,
और ज़िंदगी —
वो ढलान पर खड़ी है।

 शीशे में मेरे अस्क को अब फुर्सत मिली थी,
शायद वो मैं थी जो कहीं खो गई थी। मेरी ज़िंदगी अब मुझसे ही सवाल कर रही थी,
मेरी रूह भी बवाल कर रही थी।
 भूल के काम और आराम,
तमाशा बन चुकी थी।

 तोड़ के अपनी चुप्पी, मैं रो रही थी,
 अब फैसला मुझे ही लेना था —
क्या यूँ ही रोते हुए गुजर जाएगा मेरा जीवन?
या फिर जो बच गया है उसमें,
अब खुद को संवारना है,
और ढूँढ लेना है ख़ुद को।

 डॉ. पल्लवी पाल 


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