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अथक, अजय, अचल !

अथक, अजय, अचल !

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अमिट है ये कल्पना,

जैसे अथाह है ये जल,

उठ और साकार कर

कोई विकल्प ना,

बन अथक

बन अजय

बन अचल !


तुझसे ही उम्मीद है

तुझसे ही ये कल,

खींच प्रत्यंचा

चढ़ा धनुष

अब देर ना कर

बन अथक

बन अजय

बन अचल !


हो तुझमे संवेदना

हो तुझमे वो ललक,

ना कर प्रतीक्षा

ना कोई संदेह जाये भड़क,


कर ले वीर रस पान तू

यही तेरा पवित्र जल,

बस याद रख

बन अथक

बन अजय

बन अचल !


बलिवेदी वीरो की है

उस चंद्र के समान,

जो निशा के अंधकार में

दे सूर्य का प्रमाण,

कह ले तू भी

एक बार वो मंत्र चल,

बन अथक

बन अजय

बन अचल !


संध्या और भी आएँगी

मन अब ना तू कर विचल,

सवेरा रंग जाए तेरी लालिमा से

करे कुछ ऐसा चल,


धर पकड़ अपनी इच्छा

कर ले वश में तू

ना अब फिसल,

बन अथक

बन अजय

बन अचल !


कतरा ना

ये तो है तेरा धरम,

संकल्प ले, बीड़ा उठा

भीष्म जैसा परम,


तू वीर है

आशीर्वाद ही है तेरा हथियार

तेरा बल,

बन अथक

बन अजय

बन अचल !


रक्त तेरा गाढ़ा हो

निकले ना घावों से जैसे जल

रोक लेना उन प्राणों को

की दुश्मन अभी भी है प्रबल

साकार हो तेरा सपना

बने स्वर्ग अपना ये कल,

बन अथक

बन अजय

बन अचल...!


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