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Uma Bali

Abstract

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Uma Bali

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अस्तित्व

अस्तित्व

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मैं जीत नहीं हार हूँ 

शोषित परिष्कृत 

और तिरस्कार हूँ

ये और बात है कि

सृष्टिकर्ता का अनमोल उपहार हूँ !


जीवन को धरातल पर लाती

पल पल जीती

और मुसकाती

मैं जीत नहीं हार हूँ 

न जाने क्यों ?

सब खोने को तैयार हूँ 

ये और बात है कि 

सब की सुधियों में पलता बढ़ता 

कोमल संस्कार हूँ !


घर आँगन को

सहेजती सँवारती 

ख़ुशियाँ ख़रीदती 

मन को मारती

मैं जीत नहीं हार हूँ

न जाने क्यों ?

सह जाने को तैयार हूँ 

ये और बात है कि

बन्धनों को पालती

एक मज़बूत दीवार हूँ !


सृष्टि को बाँधे खड़ी हूँ 

रिश्तों की मज़बूत कड़ी हूँ

जान जाए स्वाभिमान न जाए

इरादों की अटल बड़ी हूँ 

हर एक के सपने का साकार हूँ 

बेशक

मैं जीत नहीं हार हूँ !


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