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अस्तितत्व की अस्मिता

अस्तितत्व की अस्मिता

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कहा करती थी मेरी माँ

यह पुरखों की कमाई है

सुबह उठकर चरण छूना

बड़ी मेहनत की जमाई है।


कभी रहना पड़े भूखा

गैरत में तो रह जाना

समझना छत तो है सर पर

जमीं अब भी तुम्हारी है।


जब भी बाजार को जाना

तिनका चुनके घर लाना

जो तुम पे जीते हैं जीवन

अब तुम्हारी जिम्मेदारी है।


दीवारें रखना तुम पुख्ता

तो मौसम लाख रंग बदले

जरा उनको बता देना

तुम्हारी बेहतर तैयारी है।


यही सौदा है तो सुन लो

यह हर इक मां से सस्ता है

सांस लेने की चाहत में

फौरी उम्मीदों का बस्ता है।


वो रोकेगा नहीं तुमको

वो टोकेगा नहीं तुमको

जफ़ा होगा, कत्ल होगा

अब तुम्हारी पहरेदारी है।


दीवारें रखना तुम पुख्ता

तो मौसम लाख रंग बदले

जरा उनको बता देना

तुम्हारी बेहतर तैयारी है।


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