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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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अर्चना करते तुम्हारी

अर्चना करते तुम्हारी

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हर तरफ है घोर काले बादलों का डर ,

याचना लेेेकर जुुुटे प्रभु आज तेरे दर ।

क्या ख़ता जो आपदा मेंं डूबता हर घर ,

मनुजता को क्यों डसे जा रहा है ज़हर।।

सृष्टि रचकर तुमने हमको श्रेेष्ठता का हार सौंपा,

बनके सहचर कुदरती ताक़त ने हमको भार सौंपा।

ज्ञान और विज्ञान ने धरती को खुशहाली दिया,

अपना जीवन खूब छक कर हम सभी ने है जिया ।

ठीक है कुछ भ्रांंतियों के अहंकारी रुप हममेें,

आ गये छिप बैैठे जैसे दिन के सपने ।

हम विधाता की तरह बन जाने के हठ पाल बैैठे 

कुदरती ताक़त भी पीछे छोड़ डाला हम सभी ने ।

हार हमने मान ली है शरण में हम हैं तिहारी ,

तुममें हम हैं तुझमें अपनी भाग्य रेखा है हमारी।

विश्व भर मेें फैलती यह संक्रमण की है बीमारी,

मुुुक्ति दे दो हेे प्रभु हम अर्चना करते तुम्हारी ।।



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