अक़्स
अक़्स
आईने में देखता हूँ
अक़्स अपना
और उस अक़्स में
तुमको निहारता हूँ
छुपाता हूँ तुम्हें
दुनियाँ की नज़रों से
बहलाता हूँ अपने दिल को
तुम मासूम
मेरे दिल की मालिक !
कहीं कोई तुमसे
मुझे ज़ुदा न कर दे
कोई छीन न ले
मेरे एहसास को
जो कि अब मेरे अहबाब
बन गए हैं
मेरा अख़लाक़ मुझे
गर इज़ाज़त दे ज़रा
तो मैं तुम्हें
सिर्फ सज़दा
करना चाहता हूँ
उस आयत की तरह
जिसकी पाक़ रूह
ज़िस्म में ज़िंदगानी
बन उतरती है
काश ! यह अंदाजा मेरा
कुछ राहत दे मुझे
क्योंकि जहां तक
तुम्हें जाना लगता है
खुद के और क़रीब
आ गया हूँ
अपने दिल को दिल
समझना कोई ख़ता
नहीं होती
बशर्तें उस दिल में
कोई खुदाया नूर
जब बसता हो तुम सा।