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अपूर्णता होना क्या ज़रूरी है ?

अपूर्णता होना क्या ज़रूरी है ?

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अपूर्णता होना क्या ज़रूरी है ?

कोई भी ज़िंदगी पूर्ण नहीं होती

एक खालीपन

एक काश

कुछ अकेलापन

कुछ मज़बूरियां


सबकी ज़िंदगी में होती

कभी लगता ज़िंदगी एक पहेली है

जिसका जवाब नहीं किसी के पास

कभी एक खट्टा मीठा व्यंजन लगती

खुशियों की ग्रेवी में गम का तड़का

कभी सावन की हरियाली

कभी जेठ की धूप का फड़का


कभी आंंसुओं बारिश

कभी पागलपन एहसास

है क्या ज़िंदगी

फिर वही सवाल

मंजिल पर पहुंचकर भी

क्यों ख़तम नहीं होती तलाश


एक सफर

एक रंगमंच

एक किस्सा

कभी हार भी जीत से बड़ी


कभी ख़ामोशी शब्दो से विजित होती

मृत्यु है अंतिम सत्य

फिर भी हर पल जीने की आस

रहती है तो बस हर कहीं एक

अपूर्णता...!


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