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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Classics

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लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

Classics

अपनों को खोने का ग़म

अपनों को खोने का ग़म

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अपने किसी खोने का ग़म,

कभी न हो पाता है कम!

हर पल यादें आती रहती,

आँखें होती रहती है नम!!


कोई सगा जब साथ छोड़ता,

मन बहुत व्यथित हो जाता!

स्मृतियां न मिटती उसकी,

दिल जार जार कर रोता!!


जब तक रहा पिता का साया,

वट वृक्ष जैसी मिली है छाया!

मुझे छोड़ कर गए तात तुम,

अकेलेपन का डर है समाया!!


कितने कष्टों को तुमने सहकर,

मुझको जीवन के योग्य बनाया!

सत्पथ पर सतत चलते रहने को,

आंधी तूफ़ा से लड़ना सिखाया!!


जो सच्ची राह दिखाई तुमने,

अब उस पर ही मैं चलता हूँ!

मानवता को ढाला जीवन में,

बस! प्रेम का प्याला पीता हूँ!!


माँ की भी यादें न होती विस्मृत,

जिसने पाला-पोसा बड़ा किया!

ममता के आँचल में सींच मुझे,

बचपन में सद्गुण संस्कार दिया!!


माँ जैसा अब इस जग में कोई,

मुझको न प्यार है करने वाला!

अपने भूखे भी सोकर माँ ने,

रातों को मुझे दिया निवाला!!


मात-पिता के खोने का दर्द,

कोई न उसे अब भर सकता!

विस्तृत न होती हैं स्मृतियाँ,

आँखों से आँसू बरबस बहता!!


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