अपनी तलाश में!
अपनी तलाश में!
अक्सर अपनी तलाश में
निकलता रहा हूं
अपने ही जनाजे को लेकर
आधे में मगर लौट आया हूं
हर बार किसी बहाने को लेकर
इस उम्मीद पे था कि
कोई तो राह बताएगा
मगर जो भी मिला
नावाकिफ ही रहा
मेरे हालात को लेकर
देख ढंग जमाने के
मैं उलझा ही रहा
जाने कितने सवालों को लेकर
हैरां भी रहा हूं अक्सर
जमाने के,
बदगुमां जवाबों को लेकर
हीर-रांझा न मजनू-लैला
बन के अब न मरे कोई
इश्क की खातिर
अब न रही मुमताज
न रहा शाहेजहां
फिर,
क्या कीजे कोरे ताज को लेकर
हुस्न के बाजार में
दिल वालों का मेला है
चाहत के लिए
जिस्म की सरगम पर
सांसों के तार छिड़े हैं-
दिलरुबा को लेकर!