अपने हो, नहीं मेहमान
अपने हो, नहीं मेहमान


आया है मेहमान नया
नन्हा सा, लिज़लिजा
मन मेरा प्रफुल्लित सा
होगा अब घर खिला खिला।
भंवरे की गुंजन ना भाई
गिलहरी की किट किट से तंग आई
पत्तों में जब हवा सरसराई
और करने बैठी मैं गुड़ाई।
भूरी मिट्टी थी भुर भुरी
भूरी काया में मची थरथरी
एक नहीं हुई उजागर कई
धरती में जैसे मची कंपकंपी।
मिट्टी में उगलोगे प्राण तुम
ठूंठों में भर दोगे जान तुम
रेंगते हुए कर रहे कार्य ये महान तुम
अपने हो, रहना, नहीं मेहमान तुम।