अपना कहते कहते
अपना कहते कहते
पैसे, कभी सूरत, कभी औकात की ख़ातिर,
नहीं रहता कोई किसी के साथ बस जज़्बात की ख़ातिर !
यहाँ रिश्तों का ढोंग कर के लोग अपनापन बढ़ाते हैं,
फिर भरोसा बढ़ते ही अपना चेहरा दिखाते हैं !
रिश्तों का क्या कहें रिश्ते यहाँ इतने सस्ते हैं,
कपड़ो से जल्दी लोग यहाँ रिश्ते बदलते हैं !
जब होता है उन्हें मतलब तो सब अपने होते हैं,
फिर कहाँ कोई किसी को देख पलट के भी हस्ते हैं !
यहाँ सबसे धोखा क़रीबी रिश्तों ने दिया है,
अपना कहते कहते एहसास का क़त्ल किया है !
