अपना अपना चाँद
अपना अपना चाँद


आजकल तुम मुझे
कुछ अलग से लगने लगे हो .
जैसे कोई चंदा जमीं पर ,
उतरकर मेरे साथ चलने लगा हो।
शीतलता लिए सुकूँ का जीवन दिए
अब तुम मुझे भाने लगे हो।
मेरा अंदर का समंदर पहले ,
शांत रहा करता था।
पर अब अपने चाँद से मिलकर ,
उसमें ज्वार उठने लगे हैं।
मुझे नहीं पता कि चकोर को ,
अपने चाँद से मिलकर कैसा लगता होगा।
बारिश की बूंदों में मयूरों को ,
अपनी प्यास बुझाकर कैसा लगता होगा।
पर तुमसे मिलने के बाद शायद मेरी ,
वो तलाश ख़तम सी हो गयी है।
अब हम दोनों की मिलकर जिंदगी में ,
नयी तलाश की तलाश शुरू हो गयी है।
हम दोनों की जिंदगी अलग अलग शुरू हुई थी ,
पर आज दोनों की एक जिंदगी हो गयी है |